उत्तराखंड: आपदाओं की जकड़ में देवभूमि।
बादल फटने, भूस्खलन और नदियों के उफान से लगातार तबाही—धराली से थराली तक डरा रही बारिश

नीरज पुरोहित/ देहरादून, 23 अगस्त।
उत्तराखंड इस बरसात फिर से आपदा की मार झेल रहा है। कभी धराली तो कभी थराली, हर जगह बादल फटने, भूस्खलन और नदियों के उफान से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। धराली में तबाही के बाद थराली में भी बादल फटने से तहसील परिसर तक मलबा भर गया, कई वाहन क्षतिग्रस्त हुए और दो लोग लापता हो गए।
हर साल दोहराई जाती है वही त्रासदी
उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली—किसी भी जिले का नाम ले लीजिए, हर साल आपदा की वही स्क्रिप्ट देखने को मिलती है। बादल फटते हैं, लोग घर छोड़कर भागते हैं, प्रशासन मौके पर पहुँचता है और राहत कार्य शुरू कर देता है। लेकिन जैसे ही मौसम सामान्य होता है, हालात फिर से सरकार और सिस्टम की फाइलों में दब जाते हैं।
विशेषज्ञों की चेतावनी अनसुनी
भू-वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे चुके हैं कि उत्तराखंड का भौगोलिक ढांचा बेहद संवेदनशील है। अनियंत्रित निर्माण, सड़कों का चौड़ीकरण और नदी किनारे कटाई पहाड़ों को और कमजोर बना रहे हैं। लेकिन दीर्घकालिक आपदा प्रबंधन नीति अब भी सिर्फ कागज़ों पर ही सीमित है।